सोमवार, 13 अक्टूबर 2008

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

इस पृथ्वी के पश्चात् की कहानी सुनाता हूँ
मैं अपने मश्तिक्ष के आधार का किस्सा सुनाता हूँ
मनुष्य की बलहीनता का साक्षात् उदहारण बताता हूँ
इस भूगोल की नाप-हीन विशालता दिखाता हूँ
तीनो लोकों की सरलता-भरी सौगात दिखाता हूँ
इस पृथ्वी के तिनके-रुपी
जांबाज की
घमंड-भरी लाचारी दिखाता हूँ
कि इस विशाल में
पृथ्वी के
अति-सुक्ष्म रूप का आभार दिलाता हूँ
मनुष्य की शून्य-रुपी प्रस्तुति का एहसास दिलाता हूँ
मगर इक सवाल का उत्तर
आप पर
सोंप कर जाता हूँ
मैं शून्य का अर्थ समझना चाहता हूँ
मैं शून्य की शक्ति पहचानना चाहता हूँ
आपको इस उत्तर के खोज की
प्रक्रिया में
डुबाना चाहता हूँ
आप को इस सवाल का उत्तर
ख़ुद ही समझाना चाहता हूँ

1 टिप्पणी:

Dr. Dang ने कहा…

good stuff joshi..never could imagine this side of you..looking forward to more on your blog..