गुरुवार, 9 जनवरी 2014

अब कैसे काम करूँ, मैं वहाँ हो कर आया हूँ
दिल खाली है, कुछ पाना नहीं
प्यार बाकी है, वो जब आओ तो लूट लेना
सागर बाकी है, जब चाहो डूब लेना
ना हाथ हैं, ना पैर, ना दीमाग
होश बाकी है, जब चाहो पहचान लेना
प्यास नहीं, हिम्मत नहीं, होंसला नहीं
बस सार बाकी है, निचोड़ लेना
प्यार बाकि है, बटोर लेना
कुछ ख़ास बाकि है, निचोड़ लेना
प्यार बाकि है, बाँट देना
बस प्यार बाकि है, उसे बाँट देना
मेरी बात सुनो
बस प्यार बाकि है, उसे ज़रूर बाँट देना
बस प्यार बाकि है, उसे बाँट देना
प्रेम-सहित,
ओउम

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

अपना बुद्ध ढूंढे

मेरे चेहरे पर से यह बुद्ध की तस्वीर कैसे हटाओगे … 
मैं जी रहा हूँ उसे इस मन से परे हो कर … 
मेरे चैन की मस्ती कैसे मिटाओगे …
मैं सो रहा हूँ अब तुम से अलग हो कर… 
चाहतें, दुश्मनी, मोह, अपेक्षाएँ … 
कैसे उलझाओगे अब मुझे मेरे मालिक हो कर 
मैंने अपनी मालकियत ढूँढ ली है 
तुम से कोई शिकायत नहीं
बस रिश्ता ना रहा खुदा हो कर … 

सोमवार, 11 नवंबर 2013

buddh

mere chehre par se ye buddh ki tasveer kaise hataoge.. main jee raha hoon usse iss mann se pare ho kar mere chain ki masti kaise mitaoge mein so raha hoon ab tum se alag ho kar chahatein, dushmani, moh, apekshayein kaise uljhaoge ab mujhe mere maalik ho kar maine apni maalkiyat dhoond li hai tum so koi shikayat nahin bus rishta na raha khuda ho kar...

रविवार, 18 जुलाई 2010

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

Your's Truly Debut Ghazal

न हमें आप के आने का भरोसा था
न हवा का, हसीं का, जीवन का ढिंढोरा था
हमारे कर्मों का पिटारा यूं ही खुलता रहे
कर्मों की शिकायत सुनने का नजरिया था
न हमें .................................
यूं ही गम में, ख़ुशी में, हम उलझते रहे
अब उस के भरोसे जीने का नजरिया था
न हमें .....................................
न डगर है, न लक्ष्यों की बंधीश कोई
न इरादों, न होसलों के झंझट कई
हमारी उल्फत-ऐ-नज़र का अंदाज़ अलग है अब
न तेरे आने, न बिदाई, का आलम है सखत
हमारा दिल मचलता है खुली हवा के इन झोकों से अब
न तेरे आँचल की परछाई की ज़रुरत है कोई
न हमें .............................................
न हवा का, ................................................

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्णय नमः

संस्कृति के प्रभाव से 
संस्कृत  भाषा  से  अपने  योग
की  प्रतिशता  करता  हूँ
मैं  उस  शलोक  की  रचना
करने  की  आशा  रखता  हूँ
जिस  में  संस्कृत  भाषा
की  संस्कृति  की  शुद्धता
प्रसिद्द   हो
आधय्त्म  की  सुगंध  से  शोभित 
इस  शलोक  की  आशा
अपनी  संस्कृति  को  अर्पित  करता  हूँ

बुधवार, 11 नवंबर 2009

om namah shivay om vishnay namah

The Essence of my Existence

is being knocked at the door

by the soul of my Conciousness

& the Faith that drives this

gutsy initiative,

is being held up high !

I Let-go of every moment

into the hands of the Almighty

& yet,

I feel the burden of Responsibility

being asked to share;

& so,

I come back to you, My Lord,

to ask for Courage,

& Strength,

to share this effectively

with an Essence of Perfection,

that is YOU !

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

Of course, I can!

The calm chaos of the ocean
the one I reside in
is being undone
by my pain
Can I rise above this pain ?
by understanding it
becoming one with it
being coherent with it
& then,
finally,
realize the learning from it
I am on the journey to self-realization
can I keep this in my realization ?
every moment of my existence