मंगलवार, 27 जनवरी 2009

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्णय नमः

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः
इस उपाधि की स्म्रद्धा
का स्मरण कर के
मैं जाग्रति की मनोकामना रखता हूँ
अपने अन्तर के ज्ञान, की उपासना को
इस परिपक्व विज्ञान, की रोशनी से
इक नया मार्ग, इक नयी दृष्टि
और,
इस ज्ञान की गहराई, की नयी नींव
खोजने की आशा रखता हूँ
मैं मुझे, और मेरे परिश्रम को
तेरे हवाले करता हूँ
मैं मुझे, और मेरे परिश्रम को
तेरे हवाले करता हूँ