रविवार, 3 अगस्त 2008

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

मैं आजाद हूँ
आज़ादी का वह हक़, छिना-छिना-सा क्यों नज़र आता है
इतना जकर गया हूँ, कि मानो
शरीर बेरियों से बना हो, ऐसा नज़र आता है
अपनी शक्ति का अनुभव तो नही,
पर आभार ज़रूर है
महसूस करने की देर है, की ऐ, बेरियों, तुम्हारा अंत नज़दीक है

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

जिधर देखूं, चरों तरफ़ बेबसी नज़र आती है
और अगर देखता रहूँ, तो यह बेबसी बादलों में बदल जाती है
फिर वह मचलती आज़ादी देख कर, ताजगी बहार लाती है
उस आज़ादी के स्वरुप, फिर जब अपनी लाचारी असर लाती है
तब फिर, मैं बादलों के पास जाता हूँ
और पूछता हूँ, कि क्या तुम्हे कभी हमारी याद आती है
उस आसमानी रूप की शीतलता देख कर
मैं अपने जवाब की इच्छा खो देता हूँ
आसमानी शान्ति से बंधी हुई
क्या अब तुम्हे मेरी यह रिश्तेदारी नज़र आती है

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

चिंतित है मन
की आशाएं बिखर गयी
अपना यह रूप देखकर
परेशानियां बर गयीं
मगर ना जाने क्यों
उदास नहीं है मन
शायद अपने भीतर उस
सवछ रूप से
नजदीकियां बर गयी
ऐ कथीनायीओं, मैं आभारी हूँ तुम्हारा
तुम्हारे बोझ से
मेरी शारीरिक हस्ती मिट गयी
उस निम्नता से मुझे अब मुक्ति मिल गयी