मेरे चेहरे पर से यह बुद्ध की तस्वीर कैसे हटाओगे …
मैं जी रहा हूँ उसे इस मन से परे हो कर …
मेरे चैन की मस्ती कैसे मिटाओगे …
मैं सो रहा हूँ अब तुम से अलग हो कर…
चाहतें, दुश्मनी, मोह, अपेक्षाएँ …
कैसे उलझाओगे अब मुझे मेरे मालिक हो कर
मैंने अपनी मालकियत ढूँढ ली है
तुम से कोई शिकायत नहीं
बस रिश्ता ना रहा खुदा हो कर …
मैं जी रहा हूँ उसे इस मन से परे हो कर …
मेरे चैन की मस्ती कैसे मिटाओगे …
मैं सो रहा हूँ अब तुम से अलग हो कर…
चाहतें, दुश्मनी, मोह, अपेक्षाएँ …
कैसे उलझाओगे अब मुझे मेरे मालिक हो कर
मैंने अपनी मालकियत ढूँढ ली है
तुम से कोई शिकायत नहीं
बस रिश्ता ना रहा खुदा हो कर …