गुरुवार, 25 सितंबर 2008

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

इस सुबह की शीतलता
दो पक्षियों की यह ताल-मेल भरी उड़ान
बादलों से सजा यह आसमान
और सूरज की धीमी रोशनी का यह निवास
मेरा शांत मन और दिमाग
और हवा के ठंडे आनंद में
मेरा यह बदन
सब एकाक्रित हो कर
इस पक्षी की उड़ान के हर्ष से भरी
यह आवाज़ सुन रहे हैं
सूरज की यह लूका-चुपी
बादलों से उस के प्रेम का प्रदर्शन
यह द्रश्य
हम सब एकाक्रित हो कर
आज आनंद ले रहे हैं
पक्षीयों की मेल भरी उड़ान
मेरे खुले मन और दिमाग में
चिंता-रहित आगमन कर रही है
ऐ दर्शनीय नत्रिका और नात्रकाओं
इस द्रश्य के लिए, मेरा धन्यवाद स्वीकार करो





ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

इस सुन्दरता की व्याक्ख्या
किस मुख से ब्यान करुँ
यह सुरीली रोशनी
यह अटल प्रकाश
इस बत्ती की संवेदना
किस मुख से ब्यान करुँ
यह प्रकाश,
यह मोम का अनाकार आकार
प्यासा अँधेरा
उस में इस रोशनी के प्रकाश का निवास
किस मुख से ब्यान करुँ
मैं अपने विचलित मन की
कूरूप आशाओं का यह प्रदर्शन
किस मुख से ब्यान करुँ
किस मुख से ब्यान करुँ