मंगलवार, 4 मार्च 2008

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः
हे प्रभु, मैं यह मौसम आज फिर महसूस कर रहा हूँ
इस शीतल हवा का आज फिर एहसास कर रहा हूँ
मैं इस शीतल हवा के झोंके से लहराते इन वृक्षों को देख मचल परता हूँ
मैं सुबह की इस शुद्धता में मचलते इन पक्षियों को देख लहरा उठता हूँ
मेरी इस शीन हस्ती का एहसास जब मुझे होता है
मैं अपनी इस हस्ती को मिटाने के लिए मिट सकता हूँ
बहुत विशाल हो तुम प्रभु
तुम्हारी सीमाओं को ढूँढता हुआ मैं अपने सीमित आप के पार आ परता हूँ
यह अपना मिलन अब हमेशा के लिए है प्रभु
आख़िर मैं इस बार किसी हस्ती से थोरी ना मिल रहा हूँ

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