जिधर देखूं, चरों तरफ़ बेबसी नज़र आती है
और अगर देखता रहूँ, तो यह बेबसी बादलों में बदल जाती है
फिर वह मचलती आज़ादी देख कर, ताजगी बहार लाती है
उस आज़ादी के स्वरुप, फिर जब अपनी लाचारी असर लाती है
तब फिर, मैं बादलों के पास जाता हूँ
और पूछता हूँ, कि क्या तुम्हे कभी हमारी याद आती है
उस आसमानी रूप की शीतलता देख कर
मैं अपने जवाब की इच्छा खो देता हूँ
आसमानी शान्ति से बंधी हुई
क्या अब तुम्हे मेरी यह रिश्तेदारी नज़र आती है
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