शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्नाय नमः

किसी बरसात के पंछी से पूछो
की आकाश की क्या सीमा है
किसी बरसात के पंछी से पूछो
की आज़ादी की क्या सीमा है
मेरे अन्दर बसे विराट मुझ से पूछो
की इस पंछी की क्या सीमा है
मेरे सीमित आकार से पूछो
की सीमा की क्या सीमा है
असीमित इस आकाश से पूछो
पंछी, तेरे पंखो की क्या सीमा है
मेरे बेकरार मन से पूछो
आज़ादी, तेरी क्या सीमा है

कोई टिप्पणी नहीं: