गुरुवार, 24 जुलाई 2008

ॐ नमः शिवाय ॐ विश्णय नमः

पानी, वृक्ष, आसमा, और ज़मी
इन के मिलन का यह उत्सव तो देखो
मामूली मन की आशाओं के पार
इस शैतान हवा का यह ढंग तो देखो
प्रकति के इस रूप के बीच
अपने आकार की सीमा तो देखो
प्रकति की अंतहीन सीमाओं से
अपने मिलन का बीज बो के तो देखो
इन लहराते वृक्षों के बीच
मेरी आवाज़ गूंजती तो देखो
इन अनाकार बादलों का यह
आसमा में सहमा-सा धीमा चलन तो देखो
देखो, ऐ मेरे दोस्तों
अपने अन्तर यह अपना विशाल रूप तो देखो
अपना विशाल रूप तो देखो


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